दुनिया बहुत बड़ी है। आज से हजारो वर्ष पहले आने-जाने का साधन पैदल, घोड़ा, हाँथी, बैलगाड़ी या रथ थे। एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में बहुत समय लगता था। पूरी पृथ्वी में छोटे-बड़े अलग अलग राज्य थे, जिनके शासक एक-दूसरे का राज्य छीनने के लिये या, सम्पदा हड़पने के लिये आपस में युद्ध करते रहते थे। इन युध्दो में वही लोग मारे जाते थे जो सीधे तौर पर युद्ध में भाग लेते थे।
वर्तमान समय में विज्ञान एवं तकनीकि ने बहुत प्रगति कर ली है अब पूरी पृथ्वी बहुत छोटी हो गई है। बहुत कम समय में ही संसार के किसी भी कोने में पंहुचा जा सकता है।
आज की दुनिया दो आमने-सामने की परिस्थितियों से गुजर रही है एक ओर वैज्ञानिक अविष्कार है जो सकारात्मक प्रगति से दुनिया को स्वर्ग बना रहे है तो दूसरी ओर विज्ञान का अभिशाप है। परमाणु युद्ध की विभीषिका जो नर्क से भी बद्तर जीवन होने की कल्पना करा रही है। प्राकृतिक, आपदायें, भुखमरी आदि विपत्तियाँ मनुष्य को नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर रही हैं।
प्रत्येक मनुष्य में प्राकृतिक गुण काम-क्रोध, लोभ-मोह, अहंकार आदि विद्यमान् हैं। आदिकाल से अहंकार के वशीभूत होकर लोग आपस में लड़ते आ रहे हैं। आज भी ये चारों प्राकृतिक गुण विद्यमान हैं। विज्ञान की प्रगति ने परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, रासायनिक हथियार, जैविक हथियार तैयार कर मनुष्य को अधिक शक्तिशाली बना दिया हैं।
मनुष्य का प्राकृतिक गुण क्रोध और विध्वंशक हथियार एक देश द्वारा दूसरे देश को या सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने के लिए आमादा हंै। संसार में बहुत से व्यक्तियों की ऐसी विचारधारा है जो संसार को युद्ध की विभीषिका से मुक्त कराकर धरती को स्वर्ग बनाना चाहते हैं। आज जब आवागमन का साधन बहुतायत हैं, एक सेकंड में दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति से आपसी संवाद संभव हैं इस स्थिति में, युद्ध न हों – नई परिस्थिति निर्मित करने पर हम विश्व स्तर पर संवाद करें। और संसार के सभी राष्ट्र संम्प्रभुता संपन्न लोक कल्याणकारी विश्व सरकार की सार्थक कल्पना करें। आज विश्व के बहुत राष्ट्रों में आपसी समझौते भी हो रहे हैं। पूरा यूरोप जो 1945 के पूर्व आपस में लड़ते थे। अब वे सब मिलकर चल रहे हैं, कोई युद्ध नहीं हो रहा हैं। दुनिया के बहुत देश आपसी समझौता करके व्यापार बढ़ा रहे है। अतएव हम विश्व सरकार की संरचना पर सार्थक विचार करंे।