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“दुर्भाग्य से यदि परमाणु युद्ध होता है तो पृथ्वी के समस्त जीव-जन्तु़, मानव समाप्त हो जावेगें। फिर नये सिरे से वर्तमान सभ्यता आने में लाखों वर्ष लगेंगें। परमाणु युद्ध की विभीषिका से दुनिया को बचाने के लिये एक नई विचार धारा शक्तिशाली संम्प्रभुता संपन्न जनतान्त्रिक लोक कल्याणकारी एवं प्रगतिशील”
विश्व-सरकार
की अवधारणा समय की जरूरत है
बनमाली प्रसाद सोनी
कुलाधिपति,
एकेएस विश्वविद्यालय, सतना
युद्ध के पहले आज की वर्तमान स्थिति
20 हजार परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, कई लाख टन रासायनिक हथियारों, जैविक हथियारों से पृथ्वी घिरी है। एक से बढ़कर एक खतरनाक हथियारों की खोजें चालू हैं। हथियारों की होड़ बड़ी तेज है। युद्ध की धमकी देना, बर्बाद करने की धमकी देना, कभी भी अमल में लायी जा सकती है। कोई सिरफिरा राष्ट्रप्रमुख यदि चाह ले तो और अगर परमाणु बमों का प्रयोग हो जाता है तो 5 मिनट में पूरी पृथ्वी में आग लग जायेगी। कोई जीव, जन्तु, मानव न बचेगा। युद्ध आरम्भ होने के बाद कोई दर्शक न बचेगा। कोई सोचने वाला न बचेगा। अभी समय है, बुद्धजीवी सोचें। सबसे कारगर उपाय है ‘‘विश्व सरकार’’।
पूर्व में हुए युद्धों के बाद की स्थिति
(1) द्वापर युग में कौरव-पाण्डवों के बीच महाभारत युद्ध हुआ। युद्ध के पूर्व कोई समझौता नहीं हो रहा था। युद्ध में विजय की आशा कौरव-पाण्डव दोनों को दिख रही थी। भारत के सभी राजा-महाराजा किसी एक का पक्ष लेकर युद्ध क्षेत्र में आये। भारी युद्ध 18 दिन चला। युद्ध में भाई मारे गये, लड़के मारे गये, चाचा-मामा मारे गये? गुरू एवं पितामह मारे गये।
युद्ध के बाद युधिष्ठिर अकेले, अर्जुन अकेले युद्ध क्षेत्र में घूमते हैं, रोते हैं, सभी मारे गये। किसके लिये युद्ध लड़ा गया, कोई नहीं बचा।
(2) कलयुग में सम्राट अशोक ने कलिंग विजय हेतु भारी युद्ध किया। कलिंग की सेना पराजित हुई। युद्ध के बाद अशोक युद्ध क्षेत्र में गया, देखा चारों ओर लाशें पड़ी हैं। अशोक का हृदय फटने लगा। कई लाख लोगों को मारने के बाद अशोक को पश्चाताप हुआ। हृदय बदल गया। बौद्ध धर्म अपना लिया, बौद्ध धर्म का दुनिया में प्रचार किया।
(3) सन् 1942 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा गया। कई लाख सैनिक मारे गये। अन्त हुआ नागासाकी, हिरोशिमा के परमाणु हमले से। दुनिया में पहली बार वो जनता मारी गई जो युद्ध में भाग नहीं ली थी। हिरोशिमा, नागाशाकी की जनता ने कल्पना भी नहीं की थी कि युद्ध का भयंकर परिणाम उन्हें भोगना पड़ेगा। शक्तिशाली ब्रिटेन युद्ध के कारण कमजोर हो गया।
वसुधैव कुटुम्वकम्
प्रस्तावना
दुनिया बहुत बड़ी है। आज से हजारो वर्ष पहले आने-जाने का साधन पैदल, घोड़ा, हाँथी, बैलगाड़ी या रथ थे। एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में बहुत समय लगता था। पूरी पृथ्वी में छोटे-बड़े अलग अलग राज्य थे, जिनके शासक एक-दूसरे का राज्य छीनने के लिये या, सम्पदा हड़पने के लिये आपस में युद्ध करते रहते थे। इन युध्दो में वही लोग मारे जाते थे जो सीधे तौर पर युद्ध में भाग लेते थे।
वर्तमान समय में विज्ञान एवं तकनीकि ने बहुत प्रगति कर ली है अब पूरी पृथ्वी बहुत छोटी हो गई है। बहुत कम समय में ही संसार के किसी भी कोने में पंहुचा जा सकता है।
आज की दुनिया दो आमने-सामने की परिस्थितियों से गुजर रही है एक ओर वैज्ञानिक अविष्कार है जो सकारात्मक प्रगति से दुनिया को स्वर्ग बना रहे हैं तो दूसरी ओर विज्ञान का अभिशाप है। परमाणु युद्ध की विभीषिका जो नर्क से भी बद्तर जीवन होने की कल्पना करा रही है। प्राकृतिक, आपदायें, भुखमरी आदि विपत्तियाँ मनुष्य को नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर रही हैं।
प्रत्येक मनुष्य में प्राकृतिक गुण काम-क्रोध, लोभ-मोह, अहंकार आदि विद्यमान् हैं। आदिकाल से अहंकार के वशीभूत होकर लोग आपस में लड़ते आ रहे हैं। आज भी ये चारों प्राकृतिक गुण विद्यमान हैं। विज्ञान की प्रगति ने परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, रासायनिक हथियार, जैविक हथियार तैयार कर मनुष्य को अधिक शक्तिशाली बना दिया है।
मनुष्य का प्राकृतिक गुण क्रोध और विध्वंशक हथियार एक देश द्वारा दूसरे देश को या सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने के लिए आमादा है। संसार में बहुत से व्यक्तियों की ऐसी विचारधारा है जो संसार को युद्ध की विभीषिका से मुक्त कराकर धरती को स्वर्ग बनाना चाहते हैं। आज जब आवागमन का साधन बहुतायत हैं, एक सेकंड में दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति से आपसी संवाद संभव हैं इस स्थिति में, युद्ध न हों – नई परिस्थिति निर्मित करने पर हम विश्व स्तर पर संवाद करें। और संसार के सभी राष्ट्र शक्तिशाली, संम्प्रभुता संपन्न, जनतांत्रिक, लोक कल्याणकारी विश्व सरकार की सार्थक कल्पना करें। आज विश्व के बहुत राष्ट्रों में आपसी समझौते भी हो रहे हैं। पूरा यूरोप जो 1945 के पूर्व आपस में लड़ते थे। अब वे सब मिलकर चल रहे हैं, कोई युद्ध नहीं हो रहा हैं। दुनिया के बहुत देश आपसी समझौता करके व्यापार बढ़ा रहे है। अतएव हम विश्व सरकार की संरचना पर सार्थक विचार करे।
उद्देश्य संक्षिप्त रूप
1 विश्व को परमाणु युद्ध की विभीषिका से बचाना।
2 सम्पूर्ण विश्व को सम्यक रूप में विकसित करना।
3 विश्व के प्रत्येक मनुष्य को आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकि की सुख-सुविधायें उपलब्ध कराना।
4 विश्व स्तर पर पर्यावरण बिगड़ने से बचाना एवं संरक्षण करना।
5 विश्व की प्राकृतिक सम्पदा का समुचित दोहन एवं कल्याणकारी प्रयोजन में व्यवस्थित उपयोग।
6 युद्ध एवं आयुध-हथियारों के निर्माण एवं उपयोग पर पूर्ण रोक।
7 विश्व स्तर पर शान्ति एवं खुशहाली का वातावरण तैयार करके आयुध-हथियारों के प्रयोग को रोकना।
प्रस्तावित–प्रथम पहल
विश्व बंधुत्व एवं विश्व कुटुम्वकम् अर्थात् मानवीयता के संरक्षण की अवधारणा का आधार एवं बहुत ऊँची सोच, बहुत ऊँची कल्पना, बहुत बड़े त्याग को लेकर आगे बढ़ना होगा। सबसे पहले विश्व युद्ध के परिणामों की भयावह स्थिति का बोध जिसमें विश्व श्मसान का रूप ले सकता है। ऐसे भयानक परिणाम से छुटकारा पाने पर विचार करना होगा। जब उच्च स्तर पर निदान की यह प्रस्तावित भूमिका संभव लगे तब विस्तृत एवं व्यवहारिक पहल के लिए विचार करना होगा।
विश्व में लगभग 198 छोटे-बड़े राष्ट्र हैं यदि प्रत्येक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री, प्रमुख चिन्तक, प्रमुख विपक्षी नेताओं को भी आमत्रिंत करें तो एक राष्ट्र से लगभग 20 या 25 नेता जुटेंगे। दो सौ राष्ट्रों से लगभग 5000 प्रतिनिधियों/नेताओं को आमत्रिंत कर उनके विचार जानना होगा। इन 5000 विश्व नेताओ से 03 दिन विस्तृत चर्चा करनी होगी। सबके विचार लेकर सर्वसहमति से प्रस्ताव पास करना होगा।
क्षेत्रफल के निर्धारण पर विचार
प्रथम पहल सार्थक होने पर “विश्व सरकार“ का क्षेत्रफल निश्चित करना होगा।
‘विश्व सरकार’ के क्षेत्रफल में पूरी पृथ्वी होगी।
विश्व सरकार के गठन के समय जो सीमा जिस देश की है वह हमेशा वैसी ही रहे, यह विश्व सरकार का दायित्व होगा
प्रस्तावित–संरचना व्यवस्था
सम्पूर्ण विश्व की एक महान संसद होगी। इसके संसदीय क्षेत्र में 20 लाख जनसंख्या पर एक सांसद होगा। विश्व की लगभग 600 करोड़ जनसंख्या है। जनसंख्या के अनुपात से लगभग 3000 सांसद होंगे। चुनाव-संसदीय चुनाव प्रणाली के अनुसार आयोजित किया जायेगा। इन्ही सांसदों से विश्व सरकार का गठन किया जाना प्रस्तावित है।
राजनैतिक दल–
विश्व में प्रमुख तीन राजनैतिक विचार धारायें हैंः–
- पूँजीवादी विचार धारा
- साम्पवादी विचार धारा
- समाजवादी विचार धारा
तीनों विचार धाराओं के आधार पर तीन राजनैतिक दल बनाए जायें। विश्व के अग्रणी नेता अपने-अपने विचारों के आधार पर किसी एक पार्टी के सदस्य बने। पार्टीयों के नाम निम्न प्रकार से प्रस्तावित है-
- आर्थिक विकास पार्टी
- साम्यवादी पार्टी
- समाजवादी पार्टी
उपरोक्त तीनों पार्टियाँ विश्व संसद के लिये अपने-अपने उम्मीदवार चुनाव में उतारें। चुनाव की पूर्ण प्रक्रिया वर्तमान में जारी संसदीय प्रणाली के समान होंगी। जिस पार्टी से सबसे अधिक सांसद जीतकर आये अर्थात् जीते हुए सांसदों की सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी का नेता अपनी सरकार/मंत्रीमंडल बनाये। चुनाव लड़ने की शर्त यह होनी चाहिए कि जो प्रत्याशी जहाँ से चुनाव लड़े, वह उसी संसदीय क्षेत्र का निवासी हो। प्रत्येक राष्ट्र में अपने सदस्य बनावें तथा विश्व-संसद के चुनावों में भाग लेवे।
विश्व संसद में दो सदन
- निम्न सदन – जो सीधे जनता द्वारा चुनी जावे
- उच्च सदन – विश्व संसद की उच्च सदन जिसमेंप्रत्येक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष सदस्य हों। इनकी संख्या लगभग 198 होगी।
विश्व सरकार के गठन के लिये सबसे बड़ी पार्टी (चुनाव जीते हुए अधिकतम सांसद के आधार पर) को आमंत्रित किया जावे। सरकार बनाने के लिये 50% सांसद होना आवश्यक न रहे क्यों कि यह खीचतान एवं भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा देती है। सबसे ज्यादा मत पाने वाला विश्व-सांसद हो तथा सबसे बड़ी पार्टी सरकार बनाये।
संसद का कार्यकाल 10 वर्ष रखा जाएँ।
विश्व संसद या विश्व सरकार के किसी राष्ट्र को वीटो पावर नहीं होगा।
विश्व–राष्टपति
विश्व राष्ट्राध्यक्ष के रूप में विश्व-राष्ट्रपति का चुनाव किया जावेगा। विश्व राष्ट्रपति का चयन विश्व संसद के चुने हुये सांसद एवं विश्व के राष्ट्राध्यक्ष करेगे। बहुमत प्राप्त व्यक्ति को विश्व-राष्ट्रपति घोषित किया जावेगा।
विश्व–राष्ट्रपति की योग्यता
- विश्व-राष्ट्रपति बनने के लिये आवश्यक शर्त होगी कि वह किसी ऐसे राष्ट्र का जिसकी जनसंख्या 10 करोड़ से कम न हो और कम से कम 5 वर्ष सफल शासनाध्यक्ष ( राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ) रहा हो।
- विश्व-राष्ट्रपति होने के लिये उम्र 45 वर्ष से अधिक तथा 70 वर्ष से कम हो।
- विश्व-राष्ट्रपति को कोई ऐसी बीमारी न हो जिससे वह अपने कार्यकाल को पूर्ण न कर सके अर्थात् किसी प्रकार कि घातक बीमारी न हो।
4- प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी हो।
राष्ट्रपति का कार्यकाल
विश्व-राष्ट्रपति का कार्यकाल 10 वर्ष हो, जिससे वह प्रारम्भ की गई नीतियों एवं योजनाओं को अपने शासन काल में ही पूरा कर सके। विश्व संसद एवं मंत्रिमंडल का कार्यकाल भी 10 वर्ष का हो। इतने बड़े स्तर पर चुनाव की कठिनाईयां भी कम होंगीं।
राष्ट्रपति के अधिकार
- विश्व-राष्ट्रपति, विश्व प्रधानमंत्री के सलाह से समस्त कार्य करेगा।
- विश्व-राष्ट्रपति का प्रशासनिक मुख्यालय किसी बड़े राष्ट्र के सुविधा जनक नगर में होगा।
- विश्व-राष्ट्रपति पूरे विश्व में सबसे बड़ा अधिकारी होगा।
- विश्व-राष्ट्रपति पूरे विश्व की सेनाओं का प्रधान सेनापति होगा। पूरे विश्व की सेनायें विश्व सरकार के अधीन होगी।
- विश्व की समस्त आयुध फैक्ट्रियां विश्व राष्ट्रपति के अधीन होगीं।
- विश्व के समस्त परमाणु बम भंडार, हाइड्रोजन बम भंडार, रासायनिक हथियार भंडार, समस्त जैविक हथियार के भंडार विश्व राष्ट्रपति के अधीन होंगे।
- विश्व-राष्ट्रपति के आधीन पूरे विश्व के नागरिक होंगे उन्हें विश्वमानव माना जावेगा।
- विश्व-राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि पूरी जनता को आंतकवाद, साम्प्रदायवाद से सुरक्षित कर नवीन मानव सभ्यता (वसुधैव कुटुम्वकम्) की व्याख्या करे।
- विश्व-राष्ट्रपति के अधीन वर्तमान में संचालित समस्त विश्व स्तर की संस्थाएं होंगी।
(जैसे राष्ट्रसंघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय आदि)
राष्ट्रपति के कर्तव्य
- विश्व-राष्ट्रपतिमंत्रिमंडल के सलाह से पूरे विश्व के राष्ट्रों को समुचित विकसित करे।
- जिन देशो में प्रचुर मात्रा में खाद्यान का उत्पादन नहीं होता, उन्हें अन्य देशो से खरीद कर खाद्यान का भण्डारण एवं आपूर्ति कराये। विश्व के किसी देश में भुखमरी न रहे।
- प्रकृति के अनुकूल जिस देश में जिस वस्तु का उतपादन हो सकता हो उन देशो में उस वस्तु का उत्पादन बढ़ाये।
- पूरी पृथ्वी में शान्ति की स्थापना हो, तथा विश्व बंधुत्व धारणा का प्रचार पुनस्र्थापित करना।
- मनुष्यता (वसुधैव कुटुम्वकम्) को बढ़ावा देना।
- पूरे विश्व में यातायात के साधनों को बढ़ाना एवं उनका समन्वय।
- वर्षा का पानी रोक कर यथा सम्भव एक देश से दूसरे देश तक पानी पहुँचाना।
- पर्यावरणीय समृद्धि तथा प्राकृतिक संसाधनो का समुचित उपयोग करना।
- पूरे विश्व में स्वास्थ्य सुविधाएं की वृद्धि एवं एक दूसरे देशों के लिए परस्पर उपलब्ध कराना।
- तकनीकि विज्ञान एवं शिक्षा का प्रसार करना।
विश्व राष्ट्रपति के अधिकार एवं कर्तव्यो का पालन मंत्रिमंडल के सहयोग से प्रधानमंत्री करेगा।
विश्व–राष्ट्रपति को हटाना
यदि चुने हुये सांसदो को विश्व-राष्ट्रपति के कृत्यों से अनुभव होता है कि विश्व राष्ट्रपति निरंकुश शासक का रूप ले रहा है तो विश्व संसद के 1/3 सदस्य महाभियोग का प्रस्ताव लायें जिसे विश्व संसद के 2/3 बहुमत से पारित होना चाहिए। तथा विश्व-संसद की उच्च सदन के बहुमत से मान्यता मिल जाने पर राष्ट्रपति को त्यागपत्र दे देना होगा।
प्रधानमंत्री को हटाना
शासन करने वाली पार्टी के 1/3 सदस्य राष्ट्रपति को ज्ञापन देंगे तथा राष्ट्रपति यह देखेंगें कि पार्टी में उन्हें बहुमत प्राप्त नहीं है तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से स्तीफा लेगें। पार्टी दूसरे नेता को प्रधानमंत्री चुने।
विश्व सरकार के आय के श्रोत
- वर्तमान समय के विश्व के समस्त राष्ट्र आयुध निर्माण में या आयुध खरीदने में, रक्षा की तैयारियों में अपने बजट का 10% से 20% तक खर्च करती है अतः इन खर्चो का 50% राशि विश्व सरकार को टैक्स के रूप में दे तथा 50% राशि स्वयं अपने राष्ट्र के विकास पर खर्च करे।
- समुद्र से आवागवन यातायात टैक्स।
- अन्य टैक्स जो विश्व संसद के निर्णय द्वारा निर्धारित होंगे।
विश्व–सरकार के लाभ
- विश्व में युद्ध की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।
- विश्व में पर्यावरण सुरक्षित होगा।
- विश्व के समस्त देश विकसित होने लगेंगे।
- प्रत्येक देश की सीमाएँ संरक्षित होगी।
- दुनिया से भेद-भाव समाप्त होगा। सबको बराबर का अधिकार मिलेगा।
- गरीब देशो का शोषण पूरी तरह समाप्त होगा।
- विश्व का विकास तेजी से होगा।
हानि
विश्व सरकार से किसी को हानि नहीं होगी।
नोट:- सम्पूर्ण विश्व में चाहे-अनचाहे वर्तमान विध्वंसात्मक सम्भावनाओं में विश्व-सरकार की अनिवार्यता एवं उसकी संरचना के लिए प्रस्तावित संक्षिप्त रूपरेखा वैचारिक पहल पर आधारित है।
विश्व सरकार पर शंकायें एवं उनके उत्तर
विश्व सरकार की क्या आवश्यकता है?
वर्तमान समय में लगभग 20 हजार परमाणु बम, हाईड्रोजन बम का भंडार है। लाखों टन रासायनिक हथियार, जैविक हथियार मौजूद हैं। दुनिया में महाशक्तियाँ आगे बढ़ने की होड़ में लगी हैं। जो कम शक्तिशाली है वह सबसे अधिक शक्तिशाली बनने में लगा है, जो महाशक्तिशाली है, वह और अधिक शक्तिशाली बनने में लगा है। विकासशील राष्ट्र हथियारों का भंडारण बढ़ा रहे हैं। समुद्र एवं आकाश में वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश में शक्तिशाली जल जहाज, पनडुब्बियाँ, लड़ाकू विमान बनाये एवं खरीदे जा रहे हैं। सीमा सुरक्षा के नाम पर बजट का भारी हिस्सा व्यय किया जा रहा है। यह होड़ रुक नहीं रही है। अमीर एवं शक्तिशाली देश खतरनाक हथियारों का उत्पादन बढ़ा रहे हैं और गरीब देश सुरक्षा के नाम पर खरीर रहे हैं।
आतंकवाद, सम्प्रदायवाद बढ़ता जा रहा है। सभी अहंकार में डूबे हुये हैं। दुनिया में कई देश विश्व में अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगे हैं। स्थिति कभी भी विस्फोटक रूप ले सकती है। चिन्गारी लगते ही परमाणु बम से लैस मिसाइलें सक्रिय हो जायेंगी। आक्रमण युद्ध जीतने के नाम पर बड़ा तेज हो जायेगा। परमाणु युद्ध हो जाने के बाद कोई व्यक्ति जीवित नहीं रहेगा जो युद्ध कैसा था बता सके और न सुनने वाला जिन्दा रहेगा।
अभी हम कल्पना कर सकते हैं कि युद्ध की विभीषिका कैसी होगी। हमारे सामने जापान के हिरोसिमा, नागासाकी के परमाणु बम की त्रासदी मौजूद है। कल्पना करिये युद्ध की विभीषिका कैसी होगी। युद्ध प्रारम्भ होते ही स्वचलित मिशाइलें परमाणु बम गिराना प्रारम्भ कर देंगी। ऐसा लगेगा कि हजारों सूर्य पृथ्वी पर उतर आये। पृथ्वी में भारी शोर के साथ भारी गड्ढे खुद जायेंगे। संसार के सारे जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े, मानव, जानवर सब एक मिनट में मर जायेंगे। भारी मात्रा में धूल के कण एवं विषैली गैसों से भरे धुयें आकाश में फैल जायेंगे। पृथ्वी अंधकार से ढंक जायेगी। सूर्य की किरणें पृथ्वी तक कई माह तक नहीं पहुंचेंगी। सूर्य की किरणें पृथ्वी में न पहुंचने पर बर्फ की मोटी तह पृथ्वी में जम जायेगी। कई सालों बाद घुंआ साफ होगा, तब बर्फ पिघलेगी। पृथ्वी में सूनसान वातावरण होगा। पुनः कई वर्ष बाद छोटे जीव जन्तु पैदा होंगे। पुनः मनुष्य पैदा होगा कि नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता। अगर मनुष्य पैदा भी होगा तो उसका स्वरूप कैसा होगा, अन्दाज लगाना कठिन है। वर्तमान सभ्यता आने में शायद लाखों वर्ष लगें।
क्या हम यह विनाशलीला देखने को तैयार हैं? गम्भीरता से सोचिये, कौन जिम्मेदार होगा, इस विनाश का। ईश्वर ने, अल्लाह ने, गाॅड ने चाहे जो कहें इस संसार की रचना की है। हम इसे बचाने की कोशिश करें। आज मनुष्य अधिक ज्ञानी भी है, आज आने-जाने के साधन भी हैं तो क्यों न हम इस विनाश से बचाने के लिये ‘‘विश्व सरकार’’ की कल्पना करें। संसार को बचाने के लिये विश्व सरकार की आवश्यकता है।
विश्व सरकार बनाने में कौन सी प्रणाली अपनाई जायेगी?
जब से दुनिया बनी है, तब से लेकर अब तक चार प्रणालियों से शासन चलाया गया है-
(1) राजतंत्र
(2) कुलीन तंत्र
(3) निरंकुश तंत्र
(4) प्रजातंत्र
दुनिया के कई देशों में आज भी राजतंत्र है। कुछ देशों में निरंकुश तंत्र है। परन्तु जनता में जैसे-जैसे जागरुकता आती गई प्रजातंत्र शासन प्रणाली वहाँ शासन में आती गई। सबसे अच्छी शासन प्रणाली प्रजातंत्र को माना गया है।
प्रजातंत्र शासन प्रणाली के दो प्रकार हैं –
(1) अध्यक्षीय शासन प्रणाली
(2) संसदीय शासन प्रणाली
संसदीय शासन प्रणाली सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है। अतः विश्व सरकार बनाने में इसी प्रणाली को अपनाना उचित होगा।
विश्व–सरकार बनाने की कार्ययोजना
विश्व में तनाव बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। विकास से ज्यादा विनाश की गति है। तीसरे विश्व युद्ध का माहौल तेजी से बनता जा रहा है। विश्व युद्ध को रोकने के लिये प्रयास बहुत जरूरी है।
- क्यों चाहिये विश्व सरकार:- दुर्भाग्य से यदि परमाणु युद्ध हो जाता है तो 5 मिनट में पूरे पृथ्वी के जीव-जन्तु, मानव समाप्त हो जायेंगे। पुनः लाखों वर्ष बाद यदि मानव पैदा होगा तो वह मानव कैसा होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
युद्ध की विभीषिका से संसार को बचाने के लिये चाहिये ‘‘शक्तिशाली सम्प्रभुता सम्पन्न, जनतान्त्रिक, लोक कल्याणकारी एवं प्रगतिशील ‘विश्व सरकार’
- क्या विश्व सरकार बनाना सम्भव है:- संसार में इस समय दो स्थितियाँ हैं
(1) परमाणु युद्ध से पूर्ण विनाश
(2) युद्धों में पूरी तरह से रोक एवं दुनिया का सम्पूर्ण विकास
बुद्धिजीवी सोचें कौन सी परिस्थिति ठीक है। क्या बुद्धिजीवी पूर्ण विनाश पसन्द करेंगे, सम्भवतः नहीं। दूसरी परिस्थिति सभी को ठीक लगेगी। पहली स्थिति से बचने के लिये दूसरी स्थिति स्वीकार करना मजबूरी है और यही ठीक है – ‘विश्व सरकार’ बनाना।
- कैसे सम्भव है:- यह सोच, यह विचारधारा भारत की है। अतः जब प्रधानमंत्री जी सहमत हो जाये तो:-
(A) सबसे पहले केन्द्र सरकार के अधीन ‘विश्व सरकार विभाग’ खोलना होगा।
(B) दूसरी पहल में कैबिनेट स्तर का मंत्री जो विदेश मंत्री के समकक्ष हो नियुक्त करना होगा।
(C) विश्व सरकार बनाने के सम्बन्ध में विस्तृत प्रचार पूरे विश्व में करना होगा। पूरे विश्व में न्यूज चैनल, रेडियो प्रसारण, न्यूज पेपर के माध्यम से पूरे विश्व के बुद्धिजीवियों को समझना होगा।
(D) विश्व के प्रमुख देशों जैसे अमेरिका, रूस, चीन, इंग्लैण्ड, फ्रान्स, जर्मनी, जापान, भारत, इजराइल, दक्षिण अङ्क्रीका, ब्राजील, कनाडा आदि देशों आदि देशों के राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों, प्रमुख विपक्षी दल के नेता, बड़े पत्रकार आदि की किसी एक देश में बैठक बुलानी होगी। बैठक में विश्व सरकार के लाभ-हानि पर विस्तृत चर्चा करनी होगी तथा सहमति बनाने का प्रयास किया जावेगा।
(E) यदि बड़े देशों में सहमति बन जाती है विश्व के समस्त देशों की बड़ी बैठक बुलाई जावे। समस्त देशों के राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री, विपक्षी दल के नेता, प्रमुख पत्रकार, चिन्तक बैठक में भाग लें। विस्तार से विश्व सरकार की अच्छाइयों, बुराइयों पर चर्चा हो तथा सहमति बनाने की कोशिश की जावे।
(F) विश्व के समस्त देशों से सहमति प्राप्त कर, सबकी राय से कार्यवाहक राष्ट्रपति की नियुक्ति करना।
- कार्यवाहक राष्ट्रपति:- कार्यवाहक राष्ट्रपति को समस्त देशों की संसद एवं कार्यपालिका प्रमुखों से विश्व सरकार में पूर्णतः विलीनीकरण प्रस्ताव पास कराना होगा। विलीनीकरण में अपने देश को विश्व सरकार का अभिन्न अंग घोषित किया जावे।
- समस्त देशों से विलीनीकरण प्रस्ताव पास होने के बाद संविधान सभा का गठन किया जावे।
- संविधान सभा शक्तिशाली, सम्प्रभुता सम्पन्न, जनतान्त्रिक, लोक कल्याणकारी एवं प्रगतिशील विश्व सरकार की भावना के साथ ‘विश्व संविधान’ का निर्माण करें।
- विश्व संविधान को विश्व के समस्त देशों की संसद, राष्ट्राध्यक्ष एवं राष्ट्र प्रमुखों द्वारा पारित कराया जावे।
- विश्व संविधान के अंतर्गत सर्वसहमति से एक ‘विश्व एजेण्डा फार गवर्नेंस’ बनाना होगा जिसके अनुसार ही विश्व सरकार चलेगी चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो या कोई भी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हो, विश्व एजेण्डा पर ही चलना होगा। विश्व एजेण्डा में परिवर्तन विश्व संसद द्वारा सर्वसहमति से ही किया जा सकेगा।
- जनतान्त्रिक सरकार संसदीय प्रणाली पर आधारित हो जिसमें दो सदन हों (1) निचली सदन सीधे जनता द्वारा चुने हुये प्रतिनिधियों की हो तथा (2) उच्च सदन विश्व के समस्त देशों के राष्ट्राध्यक्ष सदस्य हों।.
- कार्यवाहक राष्ट्रपति चुनाव आयोग का गठन करें जो विश्व के सभी चुनाव आयोगों से मदद लेकर विश्व संसद के सदस्यों का चयन करें।
- विश्व में व्याप्त प्रमुख विचारधारा के आधार पर तीन पार्टियां बनें।
- आगे की कार्यवाही संविधान के अनुसार की जावे।
बनमाली प्रसाद सोनी
कुलाधिपति,
एकेएस विश्वविद्यालय,
सतना
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